अगली ख़बर
Newszop

कन्नड़ फिल्म 'डोंट टेल मदर' में बचपन की जादुई कहानियाँ

Send Push
फिल्म का परिचय

कन्नड़ फिल्मकार अनूप लोक्कुर की पहली फीचर फिल्म डोंट टेल मदर का शीर्षक भाइयों के बीच एक गुप्त कोड से लिया गया है। कहानी में मुख्य पात्र, आकाश (सिद्धार्थ स्वरोप) और आदि (अनिरुद्ध एल केसरकर), कई घटनाओं का सामना करते हैं, लेकिन उन्हें लगता है कि वे इन सबका सामना कर सकते हैं।


1990 के दशक का बैंगलोर

यह आकर्षक और खूबसूरती से प्रस्तुत किया गया नाटक 1990 के दशक के बैंगलोर में सेट है। उस समय के कैथोड-रे ट्यूब टीवी और वॉकमैन का जिक्र है। आकाश की माँ (ऐश्वर्या दिनेश) अपने लिए समय निकालने के लिए वीडियो कैसेट पर एरोबिक्स देखती हैं, जो उनके लिए बहुत कम होता है।


पारिवारिक जीवन

माँ घर के कामों और बच्चों की परवरिश में व्यस्त रहती हैं, जबकि पिता (कार्तिक नागराजन) अक्सर काम के सिलसिले में बाहर रहते हैं। यह परिवार प्यार भरा है, लेकिन माँ के लिए यह कभी-कभी थोड़ा दबाव भरा भी हो जाता है।


कहानी की संरचना

लोक्कुर की पटकथा पारंपरिक संरचना से अलग है, जिसमें कई एपिसोड हैं जो बच्चों, उनके माता-पिता और विस्तारित परिवार के सदस्यों के बीच के रिश्तों को उजागर करते हैं। दादा-दादी पास में रहते हैं, और छुट्टियाँ पारिवारिक घर में बिताई जाती हैं।


बचपन की जादुई यादें

डोंट टेल मदर में बचपन को जादुई और निर्दोष दिखाया गया है, लेकिन यह भी कठोर और वयस्कता की ओर बढ़ता है। लोक्कुर ने बताया कि फिल्म में जो यादें हैं, वे उस व्यक्ति के दृष्टिकोण से रंगित होती हैं जो उन्हें याद कर रहा है।


फिल्म का विकास

लोक्कुर ने 2019 में इस कहानी पर एक शॉर्ट फिल्म बनाने का इरादा किया था, लेकिन कोविड महामारी के दौरान उन्होंने इसे फीचर स्क्रिप्ट में विकसित किया। डोंट टेल मदर का प्रीमियर हाल ही में बुसान अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में हुआ।


किरदारों की गहराई

फिल्म मुख्य रूप से नौ वर्षीय आकाश और उसकी माँ के दृष्टिकोण से आगे बढ़ती है। आकाश उन चीजों को देखता और सुनता है जो बच्चों को नहीं देखनी चाहिए, जैसे माता-पिता के बीच झगड़े और माँ की अधूरी इच्छाएँ।


फिल्म की गति

फिल्म की धीमी गति में समय का अनुभव गहराई से महसूस होता है। लोक्कुर ने कहा कि 1990 का दशक बच्चों के लिए एक खूबसूरत समय था।


उत्पादन की चुनौतियाँ

फिल्म के निर्माण में एक चुनौती यह थी कि बैंगलोर के वर्तमान शहरी परिवेश से बचना था। लोक्कुर ने बताया कि बाहरी शॉट्स में आधुनिक वाहनों को शामिल करने से बचना सबसे कठिन था।


प्राकृतिक प्रदर्शन

फिल्म में बच्चों ने बेहद स्वाभाविक प्रदर्शन किया है। सिद्धार्थ स्वरोप और अनिरुद्ध एल केसरकर ने भाई-बहन की तरह व्यवहार किया।


लोक्कुर की प्रेरणाएँ

लोक्कुर ने पाथेर पंचाली, समर 1993, द फ्लोरिडा प्रोजेक्ट और नobody knows जैसी फिल्मों का उल्लेख किया, जो बचपन की मासूमियत को दर्शाती हैं।


बच्चों की रसायन विज्ञान

लोक्कुर ने कहा कि बच्चों के बीच भाईचारे का रिश्ता स्वाभाविक था, और यह उनके प्रदर्शन में भी झलकता है।


फिल्म का ट्रेलर


न्यूजपॉईंट पसंद? अब ऐप डाउनलोड करें